Wednesday, January 22, 2025


श्री जयराम रमेश, संसद सदस्य, महासचिव (संचार) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, द्वारा जारी बयान

8 जनवरी, 2025

केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक़ वित्त वर्ष 2025 में सिर्फ 6.4% GDP ग्रोथ का अनुमान है। यह चार साल का सबसे निचला स्तर है, और वित्त वर्ष 2024 में दर्ज 8.2% के ग्रोथ की तुलना में स्पष्ट गिरावट है। यह RBI के हालिया 6.6% के ग्रोथ के उस अनुमान से भी कम है, जो ख़ुद ही पहले के 7.2% अनुमान से कम है। कुछ ही हफ़्तों में, भारतीय अर्थव्यवस्था निचले स्तर पर आ गई है - अत्यंत महत्वपूर्ण महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर उस तरह से नहीं बढ़ रहा है जिस तरह से बढ़ना चाहिए।

सरकार अब भारत के ग्रोथ में गिरावट की वास्तविकता और इसके विभिन्न पहलुओं से इंकार नहीं कर सकती है:

1. सामूहिक खपत में स्थिरता: पिछले दस वर्षों में, भारत की उपभोग कहानी रिवर्स स्विंग में चली गई है और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है। इस वर्ष की दूसरी तिमाही के आंकड़ों में, निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) ग्रोथ पिछली तिमाही के 7.4% से धीमा होकर 6% रह गया। कारों की बिक्री चार साल के निचले स्तर पर आ गई है। भारतीय उद्योग जगत के कई CEO ने ख़ुद ही 'सिकुड़ते' मध्यम वर्ग को लेकर चिंता जताई है। स्थिर खपत न केवल GDP ग्रोथ रेट को सीधे तौर पर प्रभावित कर रही है, बल्कि इस वजह से ही प्राइवेट सेक्टर निवेश करने की इच्छा नहीं दिखा रहा है।

 

2. सुस्त निजी निवेश: सकल स्थिर पूंजी निर्माण (पब्लिक और प्राइवेट) में ग्रोथ के लिए सरकार का अनुमान है कि इस वर्ष यह धीमा होकर 6.4% हो जाएगा, जो पिछले वर्ष 9% था। यह आंकड़ा भी भारत में निवेश करने के लिए प्राइवेट सेक्टर की अनिच्छा की वास्तविकता को दिखाता है। जैसा कि सरकार के अपने आर्थिक सर्वेक्षण (2024) ने स्वीकार किया, “मशीनरी और उपकरण और बौद्धिक संपदा उत्पादों में प्राइवेट सेक्टर का GFCF (सकल निश्चित पूंजी निर्माण) वित्त वर्ष 2023 तक चार वर्षों में संचयी रूप से केवल 35% बढ़ा है... यह अच्छा मिश्रण नहीं है।" वित्त वर्ष 2023 और वित्त वर्ष 24 के बीच प्राइवेट सेक्टर द्वारा नए प्रोजेक्ट की घोषणाओं में 21% की गिरावट के साथ यह और भी बदतर हो गया है। नई उत्पादक क्षमता में निवेश करने में प्राइवेट सेक्टर की अनिच्छा का मतलब है कि हमारे मीडियम टर्म का ग्रोथ प्रभावित होता रहेगा।

 

3. कम सरकारी पूंजीगत व्यय: वित्त वर्ष 2025 के केंद्रीय बजट में 11.11 लाख करोड़ रुपए के आवंटन के साथ पूंजीगत व्यय निवेश में वृद्धि को लेकर बड़े-बड़े और भव्य वादे किए गए। नवंबर तक सिर्फ 5.13 लाख करोड़ खर्च हुए हैं- पिछले साल से 12% कम। अधिकांश अनुमान बताते हैं कि सरकार वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले लक्ष्य पूरा करने में विफल रहेगी। अपने फंड्स को खर्च करने में सरकार की अपनी अक्षमता भी अर्थव्यवस्था में फैले अंधकार के बादलों के लिए आंशिक रूप से ज़िम्मेदार है।

 

4. घटती घरेलू बचत: केंद्र सरकार के आंकड़ों से ही पता चलता है कि 2020-2021 और 2022-2023 के बीच, परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत में 9 लाख करोड़ रुपए की गिरावट आई है। इस बीच, घरेलू वित्तीय देनदारियां अब सकल घरेलू उत्पाद का 6.4% हैं - जो दशकों में सबसे अधिक है। कोविड-19 महामारी के दौर की नीतिगत विफलताएं देश के परिवारों को परेशान कर रही हैं।

यह वित्त वर्ष 2025-26 के आगामी केंद्रीय बजट की एक निराशाजनक पृष्ठभूमि है। जैसा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस लगातार इस बात को कह रही है, ग्रोथ और निवेश में गिरावट के लिए ज़िम्मेदार इन बादलों को हटाने के लिए बड़े पैमाने पर बदलाव और कार्रवाई करने की आवश्यकता है। भारत के ग़रीबों के लिए आय सहायता, मनरेगा के लिए अधिक मजदूरी और बढ़ी हुई MSP समय की मांग है। साथ ही साथ जटिल GST व्यवस्था का बड़े पैमाने पर सरलीकरण और मध्यम वर्ग के लिए आयकर राहत भी समय की मांग है।